जगदीश चन्द्र बसु जीवनी – Biography of Jagdish Chandra Bose in Hindi

जगदीशचंद्र बसु

जन्म-30 नवंबर, 1858

निधन-23 नवंबर, 1937

खास बात : सर जे.सी. बसु ने सर्वप्रथम दर्शाया है कि पेड़-पौधे संवेदनशील होते हैं। कोहेरर और क्रेस्कोग्राफ जैसे यंत्रों के आविष्कर्ता बोस ने वायरलेस टेलीग्राफ का भी आविष्कार किया था, जिसे पेटेंट कराने में मारकोनी ने बाजी मार ली।

जगदीश चंद्र बसु का जन्म परतंत्र भारत में बंगाल में मैमनसिंह (अब बंगलादेश) में हुआ था। शिक्षा-दीक्षा कोलकाता और लंदन में हुई। कैंब्रिज से उपाधि लेने के बाद वे कोलकाता में प्रेसीडेंसी कॉलेज में भौतिकी के प्रध्यापक हुए। बसु का रुझान प्रारंभ से ही वनस्पतियों की ओर था। वे उन्हें जड़ नहीं, वरन चेतन जीवधारी मानते थे। उनका कहना था कि पेड़-पौधे बाहरी कारकों के प्रति संवेदनशील होते हैं और उनमें प्रतिक्रिया होती है।

उनकी संवेदनशीलता को रिकॉर्ड करने के लिए उन्होंने क्रेस्कोग्राफ नामक यंत्र बनाया, जो पेड़ों की सूक्ष्म गतिविधियों को दस हजार गुना बढ़ाकर प्रदर्शित करता था। उनकी मान्यता थी कि मुरझाने-लहराने से पेड़ों के सुखदुख को पहचाना जा सकता था। उन्होंने अपनी दोनों पुस्तकों ‘रिस्पांस इन दि लिविंग एंड नॉन-लिविंग’ (1902) और ‘दि नर्वस मैकेनिज्म ऑफ प्लांट्स’ (1926) में अपने प्रयोगों व निष्कर्षों के बारे में विस्तार से लिखा। चूंकि , तब विदेशियों, विशेषतः अंग्रेजों के समक्ष अपनी खोजों को बताना और उनकी मान्यता पाना जरूरी था, अतः बसु को बार-बार विलायत जाना पड़ा। किंतु सर ऑलिवर लाज और लार्ड केल्विन के आत्मीय आग्रह पर भी बसु लंदन में बसे नहीं और आते-जाते रहे | 10 मई, 1901 को रॉयल सोसायटी, लंदन में वैज्ञानिकों से खचाखच भरे हॉल में उन्होंने एक पौधे की जड़ों को बोतल में भरे ब्रोमाइड में डुबो दिया और पौधे का संबंध अपने आविष्कृत उस यंत्र से कर दिया, जो परदे पर प्रकाश बिंदुओं से पौधे की गति प्रदर्शित करता था। पौधा सामान्य था, तो स्पंद से प्रकाश बिंदु परदे पर पेंडुलम सी गति कर रहे थे, लेकिन ब्रोमाइड विष के असर से अचानक गति तेज हुई और फिर थम गई, मानो किसी चूहे को जहर दिया हो और वह एक बारगी तड़पकर मर गया हो। सचमुच पौधा मर गया था। हॉल तालियों से गूंज उठा। सर बसु ने रेडियो तरंगों पर मूल्यवानःशोध किया। रेडियो तरंगों का पता करने के लिए उन्होंने कोहेरर नामक यंत्र बनाया। संचित पूंजी से उन्होंने कोलकाता में बोस इंस्टीट्यूट की स्थापना की। गिरिडीह में 79 वर्ष की उम्र में उनके देहांत के बाद आइंस्टीन ने कहा कि बोस की प्रतिमा यूएनओ के प्रांगण में स्थापित होनी चाहिए।

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