आज से 800 साल पहले एक दरवेश सेट करो मिल का सफर करके जब वह अल्लाह का पैगाम लिए ईरान से हिंदुस्तान के अजमेर पहुंचा दो जो भी उसके पास आया उसी का होकर रह गया उसके दर पर दिन और धर्म अमीर गरीब छोटे-बड़े किसी की तरफ से कोई भेदभाव नहीं होता था सब पर उसके रहमो करम का नूर बराबरी से बरसा हुआ था तब से लेकर आज तक आठवीं सदी से ज्यादा वक्त बीत गया है लेकिन राजा और रंक हिंदू हो या मुसलमान जितने भी उसकी चौखट जो में वह खाली हाथ नहीं लौटे वह अपनी झोली भर कर ही लौटे हैं ख्वाजा साहब या फिर गरीब नवाज के नाम से लोगों के दिलों में बसने वाले महान सूफी संत उद्दीन चिश्ती की दरगाह का बुलंद दरवाजा इस बात का गवाह देता है कि मुहम्मद बिन तुगलक अलाउद्दीन खिलजी और मुगल अकबर से लेकर बड़े से बड़े हुक्मरान यहां पर पूरे अदब के साथ सिर झुकाए हैं या दरवाजा इस बात का भी गवाह देता है कि खवास साहब सर्वप्रथम श्रद्धा भाव की दुनिया में एक ऐसी मिसाल है जिसका कोई सीमा नहीं है महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर स्थित दरगाह सिर्फ इस्लामी प्रचार का केंद्र नहीं बल्कि यहां से हर मजहब के लोग को आपसी प्रेम का संदेश मिलता है यह देखने में बहुत ही ज्यादा आकर्षित लगता है यहां पर सभी जाति धर्म के लोग आते हैं जो भी धर्म के लोग यहां आते हैं वह अपनी मनोकामना पूर्ण करके ही जाते हैं इसकी मिसाल ख्वाजा के पवित्र स्थानों में राजा मानसिंह का लगाया चांदी का कटारा है वही ब्रिटिश महारानी मेरी क्वीन का अकीदत के रूप में बनवाया गया वजू का होज है तभी तो प्रख्यात अंग्रेजी लेखक कर्नल टाड अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि मैंने हिंदुस्तान में एक कब्र को राज करते देखा है
गरीब नवाज के नाम से मशहूर महान संत सफी हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेर स्थित दरगाह इस बात का प्रमाण देता है कि यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता है यही कारण है कि यहां पर मुसलमान के साथ-साथ दूसरे समुदाय के लोग भी इस दरगाह पर आते हैं और अपनी मन्नत को पूरा करने के लिए यहां पर चादर पोशी करते हैं इसका उदाहरण है ख्वाजा के पवित्र स्थान में राजा मान सिंह द्वारा लगाया गया कटारा कहा जाता है कि यहां पर हर दिन अनुमान से भी ज्यादा 25 26 हजार के लम सम में जरीन अजमेर आते हैं बताया जाता है कि इनमें सबसे ज्यादा गैर मुस्लिमों की संख्या होती है अनुमान के मुताबिक या गैर मुस्लिमों की संख्या लगभग 600 से ज्यादा होती है इसमें हम कह सकते हैं कि महान संत सफी हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर स्थित दरगाह पर सबसे ज्यादा हिंदू आते हैं कहा जाता है कि इसके पीछे ख्वाजा गरीब नवाज की इबादत मेहनत और कर में जो सभी धर्म समुदाय के लोग यहां पर इकट्ठे होते हैं और चादर पोशी करते हैं इसी अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज की तारीख में पूरे विश्व में धर्म के नाम पर संघर्ष के बावजूद पूरे विश्व से सभी तरह के विचार रखने वाले इंसान होते हैं और अकीदत का नजारा पेश करते हैं दरअसल सूफीवाद में एक ईश्वर की उपासना माना जाता है सूफी को किसी एक धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाता है क्योंकि वह तो ईश्वर होते हैं यही कारण है कि लगभग 8 साल से ख्वाजा के दर पर सभी धर्मों के लोग बराबर अपने आस्था रखते आ रहे हैं शायद यही कारण है कि ख्वाजा साहब सर्वप्रथम श्रद्धा भाव की दुनिया में एक ऐसी मिसाल है जिसका कोई सीमा नहीं है
गरीब नवाज के दर पर हर कोई अपने अपने अंदाज में खिदमत करते हैं ऐसे ही खिदमत गुजार में शामिल है फोजिया नाम की एक महिला जो बचपन से ही खास मौकों पर तो दागने के कार्य को अंजाम दे रही है वह अपने नाजुक हाथों से भारी भरकम तोप में बारूद भर कर जाती है तो उसकी आवाज अजमेर के आसपास स्थित गांवों तक गूंज जाता है फोजिया 8 साल की उम्र से ही तो चलाने का कार्य कर रही है अभी वह 35 साल की हो गई है पूजा ने बताया कि उनका परिवार पिछले 8 दिनों से तोप चलाने का कार्य कर रहा है पिछले 27 सालों से इस परंपरा को निभाने की जिम्मेवारी फोजिया के कंधों पर है पूजा के साथ उसके भाई मोहम्मद खुशप्रीत मोहम्मद रशीद और मोहब्बत रफीक भी तोप चलाने के कार्य को अंजाम देते हैं तोप की गरज के साथ खेलने वाली फोजिया एक छोटी सी दुकान भी चलाती है जिससे उनके घर का खर्च चलता है फोजिया ने शादी नहीं की है पूजा ने बताया कि टॉक चलाने के बदले उसे कोई मेहनताना नहीं मिलती है हालांकि खास मौके पर उसे नजारा मिलता है जिससे बारूद का खर्चा निकल जाता है चांद दिखने पर कभी तीन बार तो कभी 5 बार तो दागी जाती है उसके झंडे की रस्म के दौरान 21 तो उसके छठी पर छोटों की सलामी दी जाती है रमजान के महीने में शहरी के वक्त और शहरी खत्म होने पर भी रोजाना एक-एक बार तो चलाई जाती है जिस तरह साल भर में कुल 90 तोपों की सलामी दी जाती है गरीब नवाज के दर पर
अजमेर शरीफ जयपुर से करीब 132 किलोमीटर दूर है सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के लिए प्रसिद्ध है हजरत ख्वाजा मुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह एक ऐसा पार्क तक नाम है जिसे मात्र सुनने से ही रूह को सुकून मिलता है अजमेर शरीफ में हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलेह की मजार की जियारत कर जरूर फतेह पढ़ने की चाहत कर ख्वाबों के चाहने वालों की होती है वह एक बार इस दरबार में अपनी हाजिरी लगाने अवश्य आते हैं यहां आने वाले जायरीन चाहे वह किसी भी मजहब के क्यों ना हो हिंदू हो मुस्लिम हो सिख हो इसाई हो चाहे कोई धर्म के क्यों ना हो दस्तक देने के बाद उनके हजन में शेर की और लबों पर शांति अमन का पैगाम है बाकी रहता है यदि आप अजमेर शरीफ आना चाहते हैं तो अजमेर शहर दिल्ली और मुंबई के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर स्वर्णमई चतुर्थ भुज पर स्थित है इसके अलावा अजमेर राजस्थान के जयपुर जोधपुर जैसलमेर उदयपुर और भरतपुर जैसे सभी प्रमुख शहरों से सर्पों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है आप यहां पर बसों की सेवा भी उपलब्ध है आप यहां पर बसों की सेवा से भी आ सकते हैं अजमेर जंक्शन अजमेर का निकटतम रेलवे स्टेशन है क्योंकि यह राज का प्रवेश रेलवे स्टेशन है यहां से भारत के सभी प्रमुख शहरों के लिए रेल गाड़ी उपलब्ध है जयपुर में सांगानेर हवाई अड्डा अजमेर का निकटतम हवाई अड्डा है जो 132 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है