आइज़क न्यूटन जीवनी – Biography of Isaac Newton in Hindi
आइजक न्यूटन
जन्म-25 दिसंबर, 1642
निधन-20 मार्च, 1727
खास बात : विश्व के महानतम वैज्ञानिक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रतिपादित किया, गति के तीन नियमों का पता लगाया, तरंगों की गति का विश्लेषण किया, कैलकुलस का आविष्कार किया और गणित, प्रकाश संबंधी अनेक. मूल्यवान खोजें की।
भौतिकी के जन्मदाता न्यूटन का जन्म इंग्लैंड में लिंकन शायर के वूल्सथोर्प गांव में उस वर्ष हुआ था, जिस वर्ष गैलीलियो की मृत्यु हुई थी। क्रिसमस के दिन जन्मे नन्हे आइजक के बचने की उम्मीद कम थी। मां विधवा थीं। उन्होंने पुनर्विवाह किया तो दो साल के आइजक को दादी के यहां भेज दिया गया, जहां वह रात-दिन पढ़ता रहा। कभी चक्की तो कभा घड़ियों के मॉडल बनाता, चित्रों की नकलें करता और फल-फूल, जड़ा एकत्र करता। 14 वर्ष का होने पर वह मां के पास आ गया, क्योंकि फिर विधवा हो गई थी। वहां खेती-बाड़ी में किशोर आइजक का मन नहीं लगा तो अंततः 18 वर्ष की उम्र में उसे कैंब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में भरती करा दिया गया। वहीं 1865 में उसे बी.ए. की सनद मिली। गणित के अध्यापक आइजक बैरो ने उसकी प्रतिभा को पहचाना, प्रोत्साहित किया और अपना उत्तराधिकारी-कैंब्रिज में गणित का प्रोफेसर बना दिया। बगीचे में डाल से सेब से गिरने से उन्होंने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रतिपादित किया कि पृथ्वी सभी वस्तुओं को अपने केंद्र की ओर खींचती है। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण का ब्रह्मांडव्यापी नियम भी बताया कि ब्रह्मांड के सभी पिंड पारस्परिक आकर्षण के कारण अंतरिक्ष में लटके हुए हैं। उन्होंने कहा कि हर वस्तु दूसरी वस्तु को आकर्षण बल से खींचती है, जो उनके द्रव्यमानों के गुणनफल के समानुपाती तथा दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। न्यूटन ने गणित में कैलकुलस की नींव डाली। उन्होंने गति के तीन नियम प्रस्तुत किए-कोई अचल या सचल वस्तु वैसी ही रहेगी जब तक कि उसमें परिवर्तन न किया जाए, किसी भी वस्तु की गति को शक्ति के प्रयोग से घटाया-बढ़ाया जा सकता है एवं हर भौतिक क्रिया की बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है। न्यूटन ने सर्वप्रथम प्रिज्म के जरिए पता लगाया कि श्वेत रंग वस्तुतः सात रंगों से मिलकर बना है। उनके प्रकाश संबंधी सिद्धांत ‘ऑप्टिकल’ और अन्य सभी ‘प्रिसीपिया’ में प्रकाशित हैं। सर न्यूटन 1689 में बतौर विश्वविद्यालय प्रतिनिधि पार्लियामेंट के लिए चुने गए। अंतिम वर्षों में वे खगोलीय पिंडों पर महत्वपूर्ण काम कर रहे थे। विज्ञान को आजीवन समर्पित रही इस महान प्रतिभा का अवसान 85 वर्ष की उम्र में हुआ।